अजत पवर क पल बदलन क बद दन ह गट क पस कय ह आग क रसत?

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शिवसेना में टूट के बाद कानूनी लड़ाई जारी है. इस बीच महाराष्ट्र में एक और राजनीतिक दल में रविवार को विभाजन देखने को मिली.  इस बार शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने विद्रोह कर दिया. महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले एनसीपी के अजीत पवार ने भी विधानसभा और अदालतों में कार्रवाई से बचने के लिए कोई रास्ता जरूर खोज रखा होगा अजित पवार ने प्रफुल्ल पटेल के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में दावा किया है कि उन्हें व्यावहारिक रूप से पूरी पार्टी का समर्थन प्राप्त है. उन्होंने भी शिवसेना में विभाजन के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने जिस तरह से पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न पर दावा किया था उसी प्रकार एनसीपी पर अपना दावा जताया है. 

शरद पवार ने क्या कहा?

अपने भतीजे अजित पवार के इस दावे पर कि एनसीपी प्रमुख का समर्थन भी उन्हें प्राप्त है को लेकर शरद पवार ने कहा कि सच्चाई "जल्द ही सामने आ जाएगी." अजित पवार के शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने मीडिया से कहा, "मैंने कल पार्टी नेताओं की एक बैठक बुलाई है और वहां हम इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे."

संजय राउत ने शरद पवार से की बात

शिवसेना यूबीटी नेता संजय राउत ने ट्वीट किया है कि उन्होंने शरद पवार से बात की है. कुछ लोगों ने महाराष्ट्र की राजनीति को साफ-सुथरा करने का बीड़ा उठाया है. उन्हें अपना काम करने दीजिए मेरी अभी  शरद पवार से बात हुई है. उन्होंने कहा है कि मैं मजबूत हूं. हमें जनता का समर्थन प्राप्त है. हम उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर सब कुछ फिर से बनाएंगे. 

क्या है नियम?

जानकारों का कहना है कि अजित पवार के पास पार्टी के 53 विधायकों में से 50 का समर्थन हो, फिर भी पार्टी प्रमुख के रूप में शरद पवार 10वीं अनुसूची के तहत विद्रोहियों को अयोग्य ठहराने की मांग कर सकते हैं. 2004 में 10वीं अनुसूची से विभाजन प्रावधान हटा दिए जाने के बाद, उपलब्ध विकल्पों में से एक किसी अन्य पार्टी के साथ विलय करना है. उस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के हालिया फैसले के तहत, दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता से बचने के लिए मूल पार्टी को (किसी अन्य पार्टी के साथ) विलय करना होगा.

शिवसेना मामले में अदालत ने क्या कहा था?

मार्च में शिव सेना मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दल-बदल विरोधी कानून तब भी लागू होता है, जब कोई गुट किसी राजनीतिक दल से अलग हो जाता है और पार्टी के भीतर बहुमत हासिल करने में कामयाब हो जाता है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया था कि दसवीं अनुसूची के तहत कोई गुट बहुसंख्यक है या अल्पसंख्यक, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. 

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि एक विभाजन यह नहीं दर्शाता है कि जो लोग विभाजन के पक्ष में हैं वे पार्टी छोड़ देते हैं. दसवीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) तब भी लागू होती है जब व्यक्तियों का एक समूह, चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, दावा करता है कि वे एक ही पार्टी से हैं.

क्या इस बार विधायकों को साथ रख पाएंगे अजित पवार? 

शपथ लेने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजित पवार ने कहा कि एनसीपी पार्टी सरकार में शामिल हो गई है. हम चुनाव लड़ने के लिए एनसीपी के नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करेंगे. पार्टी हमारे साथ है, अधिकांश विधायक हमारे साथ हैं. हालांकि, 2019 में, जब अजीत पवार ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए देवेंद्र फड़नवीस के साथ शपथ ली थी तो वह अपने साथ एनसीपी विधायकों का एक बड़ा हिस्सा लाने के अपने वादे को पूरा करने में असमर्थ रहे थे. उनके प्रयास विफल हो गए थे और विपक्षी महा विकास अघाड़ी सत्ता में आ गई थी. 

इस बार बीजेपी के सूत्र दावा कर रहे हैं कि उनके पास 40 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ट्वीट किया है कि अब हमारे पास 1 मुख्यमंत्री और 2 उपमुख्यमंत्री हैं. डबल इंजन सरकार अब ट्रिपल इंजन बन गई है. महाराष्ट्र के विकास के लिए, मैं अजीत पवार और उनके नेताओं का स्वागत करता हूं. अजीत पवार का अनुभव हमारा मदद करेगा .

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