नीतीश को उम्मीद है कि बिहार सर्वेक्षण राष्ट्रव्यापी जाति आधारित गणना के लिए प्रेरणा प्रदान करेगा

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar)  ने सोमवार को विश्वास जताया कि उनकी सरकार द्वारा कराया गया जाति सर्वेक्षण सभी सामाजिक समूहों की राष्ट्रव्यापी जनगणना के लिए प्रेरणा प्रदान करेगा. नीतीश ने कहा, ‘‘1989 में जब मैं पहली बार संसद का सदस्य बना था, जातियों की राष्ट्रव्यापी गणना की मांग उठाता रहा हूं.'' उन्होंने केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की सामान्य जनगणना, जो 2021 में ही हो जानी चाहिए थी, नहीं करा पाने के लिए आलोचना की. 

नीतीश ने कहा, ‘‘कल अपराह्न 3.30 बजे मैं एक बैठक बुलाऊंगा जहां निष्कर्षों पर उन सभी नौ दलों के प्रतिनिधियों के सामने एक प्रस्तुति दी जाएगी जिनकी राज्य विधानमंडल में उपस्थिति है और जिन्होंने सर्वेक्षण के लिए सहमति दी थी.''

नीतीश कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस तर्क से सहमत हुए कि, चूंकि सर्वेक्षण से पता चला है कि ओबीसी, एससी और एसटी बिहार की आबादी का 84 प्रतिशत हिस्सा हैं, इसलिए पूरे देश के जातिगत आंकडों को जानना आवश्यक है. 

उन्होंने कहा, ‘‘हां, सर्वेक्षण ने समाज के सभी वर्गों की आबादी का अनुमान प्रदान किया है जिनमें से कई की गणना जनगणना के दौरान नहीं की गई थी. इसमें अनुसूचित जाति का ताजा आकलन भी सामने आया है. हम एक दशक पहले की तुलना में उनकी आबादी में मामूली वृद्धि देख सकते हैं.''

हालांकि उन्होंने इस सवाल को टाल दिया कि क्या सर्वेक्षण ‘‘मंडल भाग 2'' साबित होगा, यानी विभिन्न जातियों के लिए उनकी आबादी के अनुपात में संशोधित आरंक्षण की मांग को गति देगा. 

जदयू के शीर्ष नेता ने कहा, ‘‘अभी मेरे लिए इस तरह के विवरण में जाना उचित नहीं होगा. मैं कल सभी पक्षों के साथ निष्कर्ष साझा करूंगा. उसके बाद हमारा ध्यान उन जातियों पर लक्षित नीतियां बनाने पर होगा जिन्हें अधिक सहायता की आवश्यकता समझी जा सकती है. मैं यह कहना चाहूंगा कि सर्वेक्षण का सभी जातियों को लाभ होगा.''

बिहार में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे और पिछले साल भाजपा से नाता तोडकर महागठबंधन की नई सरकार बनाने वाले नीतीश से जब यह पूछा गया कि वह मोदी सरकार की विश्वकर्मा जैसी योजनाओं के बारे में क्या सोचते हैं, उन्होंने कहा, ‘‘मुझे इसकी परवाह नहीं है कि वे कौन सी योजनाएं लेकर आ रहे हैं. मैं पूछना चाहता हूं कि उन्होंने अत्यंत पिछड़े वर्गों को एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता देने पर विचार क्यों नहीं किया. हमने बहुत पहले बिहार में ऐसा किया था. नतीजे सबके सामने हैं. ऐसा लगता है कि उन्हें किसी की परवाह नहीं है न तो किसी जाति समूह की और न ही समग्र रूप से हिंदुओं या मुसलमानों की.''

यह योजना मुख्य रूप से अत्यंत पिछड़े वर्गों से संबंधित कारीगरों के लिए हैं. 

अत्यंत पिछडा वर्ग (ईबीसी) जिसे स्थानीय भाषा में अति पिछड़ा कहा जाता है, सर्वेक्षण में सबसे बड़े सामाजिक समूह के रूप में उभरा है जिनकी संख्या 4.71 करोड़ है जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 36.01 प्रतिशत है. 

कई राजनीतिक रूप से असंगठित छोटी जातियों में विभाजित ईबीसी को नीतीश के सबसे प्रतिबद्ध समर्थकों में से एक माना जाता है जो संयोगवश कुर्मी समुदाय से आते हैं. 

उन्होंने कहा, ‘‘फिलहाल मैं इस सर्वेक्षण पर विभिन्न राजनीतिक समूहों की राय पर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता, लेकिन देश में जाति जनगणना जो आखिरी बार 1931 में हुई थी, की अपनी मांग पर अभी भी कायम हूं. बिहार ने एक उदाहरण स्थापित किया है.''

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