स्थिरता, हिंदुओं पर अटैक, भारत के खिलाफ सेंटीमेंट... आखिर बांग्लादेश में कब शांति लाएंगे 'शांतिदूत' यूनुस?

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हमारा पड़ोसी बांग्लादेश (Bangladesh Violence)इन दिनों संक्रमण यानी Transition के दौर से गुजर रहा है. शेख हसीना (Sheikh Hasina) सरकार के तख्तापलट के बाद भी बांग्लादेश के कई इलाकों में हिंसा खत्म होने में नहीं आ रही है. ये बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद युनूस (Muhammad Yunus) के सामने एक बड़ी चुनौती के तौर पर आई है. मोहम्मद यूनुस एक जाने माने अर्थशास्त्री हैं. एक नायाब पहल ग्रामीण बैंक के ज़रिए लाखों गरीब लोगों की ज़िंदगी बदलने के कामयाब प्रयोग के लिए उन्हें 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है. सवाल ये है कि ये शांतिदूत बांग्लादेश में कब तक शांति बहाल कर पाएंगे? वो भी ऐसे समय में, जब वहां कई जगहों पर अल्पसंख्यकों खासतौर पर ख़ासतौर पर हिंदू इस हिंसा का निशाना बन रहे हैं.

बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हिंदू समुदाय की भारी भीड़ सरकार से मांग करने के लिए सड़कों पर उतरी है कि उन्हें हिंसा से बचाया जाए. शेख हसीना के तख्तापलट के बाद हुई हिंसा में कोई तो है, जो जानबूझकर हिंदू समुदाय को निशाना बना रहा है. क्या छात्रों के ये आंदोलन कुछ ऐसी ताकतों के हाथ में चला गया है, जो इस बहाने अपने कट्टरपंथी एजेंडा पर अमल कर रही हैं. 

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हसीना के देश छोड़ने के बाद हिंदुओं पर महले की 205 घटनाएं 
क्या ऐसी ताकतों को भारत विरोधी ताकतों का समर्थन मिल रहा है. ताजा खबरों के मुताबिक, शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश के 52 जिलों में अब तक अल्पसंख्यक समुदाय खास तौर पर हिंदुओं पर हमलों की कम से कम 205 घटनाएं हो चुकी हैं. बांग्लादेश की 17 करोड़ की आबादी में करीब 8 फीसदी हिंदू आबादी है, लेकिन तख्तापलट के बाद जो हिंसा हुई उसमें हिंदुओं, उनके घरों और संस्थानों को निशाना बनाया गया. हालांकि, इस तरह की भी खबरें आई हैं कि कई जगहों पर आंदोलन में शामिल छात्रों और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हिंदुओं के साथ मिलकर हिंदुओं के घरों और मोहल्लों की सुरक्षा के लिए मिलकर पहरा दिया है. 

ये एक अच्छा संकेत ज़रूर है, लेकिन बांग्लादेश जैसी आबादी के बीच ऐसे उदाहरण बस गिने चुने ही दिखे. ऐसे में सवाल यही है कि हिंदुओं पर हमलों की घटनाओं पर पूरी तरह काबू कब पाया जा सकेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री से फोन पर हुई पहली बात में ही ये चिंता स्पष्ट तौर पर जता दी है. 

अंतरिम सरकार ने शेख हसीना से लौटने को कहा
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शेख हसीना को वापस लौटने को कहा है. हसीना के इस्तीफे के बाद बनी सरकार में गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे ब्रिगेडियर जनरल एम सखावत ने कहा है कि उन्हें देश से निकाला नहीं गया था, वे खुद भागीं थीं. सखावत ने कहा है कि वे वापस लौट सकती हैं, बस देश में फिर से हालात न बिगाड़ें.

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 ढाका की सड़कों पर लौटी पुलिस
इस बीच एक राहत की बात ये हुई है हिंसा के बाद सड़कों से गायब हुई बांग्लादेश की पुलिस ढाका की सड़कों पर लौट आई है. दरअसल, शेख हसीना के तख्तापलट के बाद जो हिंसा हुई उसमें पुलिस को भी दंगाई तत्वों ने निशाना बनाया. उनका आरोप था कि हसीना के दौर में पुलिस ने छात्रों पर ज़ुल्म किया. इसके बाद पुलिस महकमे के लोग कानून-व्यवस्था बनाए रखने के बजाय सड़कों से गायब हो गए. क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता सता रही थी.

बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी हिंसक प्रदर्शन में मारे गए 450 लोगों में से 42 पुलिसकर्मी भी थे. प्रदर्शन के दौरान 600 में से 450 पुलिस थानों में हिंसा और आगज़नी की घटनाएं हुई थीं. ऐसे में पुलिस महकमे के नुमाइंदों ने कहा था कि जब तक पुलिसकर्मियों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जाएगी, तब तक वो काम पर नहीं लौटेंगे. हालांकि, सोमवार को अंतरिम सरकार से बातचीत के बाद पुलिस काम पर लौट आई है.

यूनुस कर रहे बांग्लादेश में जल्द शांति बहाली की कोशिश
इस बीच भारत के लिए एक चुनौती शरणार्थी समस्या की भी खड़ी हो सकती है. इसलिए ये ज़रूरी है कि बांग्लादेश में जल्द से जल्द शांति बहाली हो. इसके लिए अंतरिम सरकार के चीफ मोहम्मद यूनुस ने लोगों से शांति की अपील की है. उन्होंने अल्पसंख्यकों पर हमलों की निंदा की. यूनुस ने छात्रों से कहा कि वो उनकी हिफ़ाज़त करें. मोहम्मद यूनुस ने कहा, "बहुत सारे लोग छात्रों की कोशिश को नाकाम बनाने में लगे हैं. ये अल्पसंख्यक भाई हैं. उन्होंने बांग्लादेश के लिए बराबरी की लड़ाई लड़ी है."

अल्पसंख्यक छात्र संगठनों के नुमाइंदों से भी कर रहे बात
मोहम्मद यूनुस इस दौरान अल्पसंख्यक छात्र संगठनों के नुमाइंदों से भी मिलने की बात कर रहे हैं. इन संगठनों ने भी अपना पूरा एजेंडा तैयार रखा है. उन्होंने 8 सूत्री मांग पत्र भी तैयार रखा है. इनमें अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए अलग कानून बनाने की मांग है. हाल के हमलों के केस के लिए फास्ट ट्रैक ट्रिब्यूनल बनाने की मांग है. अल्पसंख्यक हितों के लिए अलग मंत्रालय बनाने की भी मांग है.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में गृह मंत्रालय से जुड़े सलाहकार रिटायर्ड ब्रिगेडियर जनरल सख़ावत हुसैन ने भरोसा दिलाया कि बांग्लादेश हमेशा से सेक्युलर रहा है और सेक्युलर बना रहेगा. 

भारत के खिलाफ ज़्यादा सेंटीमेंट 
इस बीच सूत्रों के मुताबिक, बांग्लादेश में भारत के खिलाफ सेंटीमेंट ज़्यादा हैं. पाकिस्तान के पक्ष में लोगों की भावनाएं कम हैं. सवाल ये है कि क्या इसके लिए भारत द्वारा शेख हसीना को शरण देना भी एक वजह है? तख्तापलट के बाद आठ दिन से शेख हसीना भारत में हैं. उन्हें लेकर आने वाले दिनों में क्या योजनाएं हैं. 

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क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
बांग्लादेश में अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस कब तक शांति बहाली कर पाएंगे? ये समझने के लिए NDTV ने सामरिक मामलों के जानकार ब्रह्मचेल्लानी और बांग्लादेश के वरिष्ठ पत्रकार फ़रीद हुसैन से बात की. बांग्लादेश में ताजा हालात पर वरिष्ठ पत्रकार फ़रीद हुसैन कहते हैं, "अभी सिचुएशन नॉर्मल होने में कुछ वक्त लगेगा. अभी अल्पसंख्यकों और खासतौर पर हिंदुओं पर हमले बंद हुए हैं. नया कोई अटैक रिपोर्ट नहीं हुआ है. अंतरिम सरकार के चीफ मोहम्मद यूनुस से अल्पसंख्यकों समुदायों के नेताओं के साथ मीटिंग की थी. इसके बाद यूनुस ने अल्पसंख्यक समुदायों को सुरक्षा का भरोसा दिया है. उन्होंने आश्वासन दिया कि देश में अब उनपर हमले नहीं होंगे."

शेख हसीना पिछले एक हफ्ते से भारत में हैं. उन्हें सेफ हाउस में रखा गया है. इसे बांग्लादेश की नई हुकूमत किस तरीके से ले रही है? इसके जवाब में फ़रीद हुसैन कहते हैं, "हसीना के इस्तीफे के बाद बनी सरकार में गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे ब्रिगेडियर जनरल एम सखावत ने कहा है कि अगर कोई भारत में गेस्ट बनकर रह रहा है, तो इससे बांग्लादेश के भारत के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा."

ढाका में सोमवार को अल्पसंख्यक हिंदुओं ने विरोध प्रदर्शन किया. क्या मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई हुकूमत अल्पसंख्यकों का भरोसा जीत पा रही है? इसपर सामरिक मामलों के जानकार ब्रह्मचेल्लानी बताते हैं, "पहली बात तो अंतरिम सरकार के पास कोई संवैधानिक जनादेश नहीं है. ये एक कमजोर सरकार है. मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार हैं. वो प्रधानमंत्री नहीं हैं. अंतरिम सरकार में सिर्फ सलाहकार हैं. सलाहकार नीति निर्माता नहीं होते हैं."

ब्रह्मचेल्लानी कहते हैं, "बांग्लादेश के राष्ट्रपति के पास भी कोई खास पावर नहीं है. असलियत ये है कि मुख्य ताकत तो आर्मी के पास है. इस समय क्रैकडाउन चल रहे हैं. जिस तरीके से बांग्लादेश के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जजों पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया. यूनिवर्सिटी के चांसलर को निकाला गया... इससे समझा जा सकता है कि पड़ोसी मुल्क में कितनी अस्थिरता है. ऐसी स्थिति में आर्मी ही मजबूत है, अंतरिम सरकार नहीं."

ब्रह्मचेल्लानी ने बताया, "शेख हसीना के गृहजिले गोपालगंज में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले हुए. वहां हिंदुओं के खिलाफ आर्मी का ही अत्याचार है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब असली सत्ता आर्मी के पास है और वही इस तरह की कार्रवाई कर रही है, तो हिंदु कैसे खुद को महफूज महसूस करेंगे."

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