वो दो महिला CBI अधिकारी, जिनके पास कोलकाता रेप-मर्डर केस की कमान, कर चुकीं हाथरस और उन्नाव केस की जांच

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कोलकाता में डॉक्टर से बलात्कार और हत्या मामले की जांच की जिम्मेदारी सीबीआई की उन दो शीर्ष महिला अधिकारियों को सौंपी गई है, जिन्होंने पहले भी ऐसे ही कुछ चर्चित मामलों को सफलता के साथ अंजाम तक पहुंचाया है. झारखंड की 1994 बैच की आईपीएस अधिकारी संपत मीणा ने हाथरस में रेप और हत्या तथा उन्नाव में बलात्कार मामले की जांच की थी. हाथरस मामले की जांच के दौरान वरिष्ठ अधिकारी सीमा पाहुजा भी उनकी टीम का हिस्सा थीं.

एडिशनल डायरेक्टर संपत मीणा 25 अधिकारियों की एक टीम की प्रभारी हैं. वो इस केस का सुपरविजन करेंगी और सीमा पाहुजा जमीनी स्तर की जांच करेंगी. उन्होंने हिमाचल प्रदेश में 10वीं क्लास की छात्रा के साथ बलात्कार और हत्या मामले में सजा दिलाई थी, जिसे एक ब्लाइंड केस माना जाता था.

2017 के गुड़िया मामले ने हिमाचल प्रदेश को झकझोर कर रख दिया था. किशोरी स्कूल से लौटते समय लापता हो गई थी. रास्ता घने जंगल से होकर जाता था, जहां उसका अपहरण कर लिया गया था. दो दिन बाद उसका शव बरामद हुआ था. उसके साथ बलात्कार किया गया था फिर उसका गला घोंट दिया गया था. इस मामले में एक लकड़ी काटने वाले अनिल कुमार को दोषी पाया गया था, जिसे 2021 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

अप्रैल 2018 में, सीबीआई ने खुलासा किया था कि उसने कैसे डीएनए की एडवांस तकनीक प्रतिशत और वंश मिलान का उपयोग कर मामला सुलझाया था. 1000 से अधिक स्थानीय लोगों से पूछताछ, 250 से अधिक लोगों के डीएनए का परीक्षण और आरोपी के पिता के डीएनए में फोरेंसिक नमूनों का मिलान पाया. आरोपी जो जमानत पर बाहर था और भाग रहा था, बाद में उसका पता लगाकर पकड़ लिया गया.

2017 के उन्नाव रेप मामले में भी, इस टीम ने भाजपा नेता और स्थानीय विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सजा दिलवाई थी. जिसे बाद में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. उसे 17 साल की दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोप में आजीवन कारावास की सजा दी गई थी.

कुलदीप सिंह सेंगर को न्यायिक हिरासत में लड़की के पिता की मौत का भी दोषी पाया गया, जिसके लिए वो 10 साल की जेल की सजा काट रहा है.

2020 के हाथरस मामले ने पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं थी और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक आक्रोश फैला था. यहां एक 19 साल की लड़की के साथ तथाकथित उच्च जाति के चार लोगों द्वारा मारपीट और सामूहिक बलात्कार किया गया था. कुछ दिन बाद उसने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया था.

लोगों में गुस्सा इस बात से और बढ़ गया कि उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन ने कथित तौर पर उसके परिवार की सहमति या मौजूदगी के बिना उसके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

इस मामले के चार आरोपियों में से तीन रिहा हो चुके हैं. वहीं चौथे, संदीप ठाकुर को बलात्कार या हत्या के लिए नहीं, बल्कि गैर इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया गया है.

कोर्ट ने महिला के बयान और फॉरेंसिक सबूतों के बेमेल को अपने फैसले का आधार बताया. पुलिस ने दावा किया कि बलात्कार का कोई सबूत नहीं है और महिला की मौत गर्दन की चोट से हुई थी.

पुलिस पर मामले के सभी चरणों में भारी चूक का आरोप लगाया गया. एफआईआरप दर्ज करने में देरी, फिर बलात्कार से इनकार और शव का जल्दबाजी में दाह संस्कार. बाद में जनता के आक्रोश को देखते हुए राज्य सरकार ने 3 अक्टूबर, 2020 को पुलिस अधीक्षक समेत पांच पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया था.



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